कुछ अल्फ़ाज़ अधूरे से हैं
कुछ गीत अधूरे से हैं
वो अगर मिल जाये तो भी
कुछ खाब्ब अधूरे से हैं
खुली किताबों सी हैं ए कहानी
दीवारों पे उकेरी हो
जैसे कोई अधूरी सी चित्रकारी
अब तलक अधूरी हैं वो जिंदगानी
देखि थी जिसने कभी
निगाहों की मेहरबानी
कुछ रस्म कुछ रिवाज
चुरा ले गए थे दिल के आफ़ताब
बिछड़ गयी थी चाँदनी
अधूरे रह गए थे अरमान
जैसे ही ली रंगों ने करवट
बदल गए थे सारे अंदाज़
इस बेखुदी में ख़ामोशी से
बस हम तकते रह गए आसमान
कुछ गीत अधूरे से हैं
वो अगर मिल जाये तो भी
कुछ खाब्ब अधूरे से हैं
खुली किताबों सी हैं ए कहानी
दीवारों पे उकेरी हो
जैसे कोई अधूरी सी चित्रकारी
अब तलक अधूरी हैं वो जिंदगानी
देखि थी जिसने कभी
निगाहों की मेहरबानी
कुछ रस्म कुछ रिवाज
चुरा ले गए थे दिल के आफ़ताब
बिछड़ गयी थी चाँदनी
अधूरे रह गए थे अरमान
जैसे ही ली रंगों ने करवट
बदल गए थे सारे अंदाज़
इस बेखुदी में ख़ामोशी से
बस हम तकते रह गए आसमान
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-08-2018) को "सिमट गया संसार" (चर्चा अंक-3068) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर कविता
ReplyDeleteबिछड़ गयी थी चाँदनी
ReplyDeleteअधूरे रह गए थे अरमान
बहुत खूब
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 21/08/2018
को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
सुन्दर
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ReplyDeleteबिछड़ गयी थी चाँदनी
अधूरे रह गए थे अरमान
जैसे ही ली रंगों ने करवट
बदल गए थे सारे अंदाज़
इस बेखुदी में ख़ामोशी से
बस हम तकते रह गए आसमान
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क्या बात... सुंदर रचना
बहुत कुछ अधूरा सा है ... जो असहज कर जाता है ।।.
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