Thursday, January 6, 2022

सोहबत

सोहबत में उस अजनबी के ऐसे रंगे हम l
तोहमत उसके गुनहा की हमको डस गयी ll 

पिंजर से इस परिंदे का रुख कैसे अब रुखसत हो l 
जब महताब के दाग में उसके गालों का तिल हो ll  

कायल थे जब हिजाब के पीछे छुपी उस नजाकत के l 
नफासत भरे पैगाम से इश्क़ लाजमी फिर कैसे ना हो ll

जादुई स्पर्श सा था उसकी मीठी मीठी बातों में l
सुध बुध भुला खो जाये साँसे जिन मुलाकातों में ll  

बेकरार उनकी निगाहों पलकों के दरमियाँ l
छिपा था बेबाक दीवानगी का आलम ऐसा ll

मुसाफिर मुझसा मशहूर गया उसके नाम से ऐसे l 
पता कोई अपना भूल गया उसके घर के आगे जैसे ll  


 

8 comments:

  1. एक से बढ़ कर शेर कहे हैं ।वह ।

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    1. आदरणीया संगीता दीदी जी
      सुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी एक रचना शुक्रवार ७ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।
    नववर्ष मंगलमय हो।

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    1. आदरणीया स्वेता दीदी जी
      मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिये तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ l
      आभार

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  3. बढ़िया शेर शुभकामनाएं

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    1. आदरणीया सरिता दीदी जी
      सुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया

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  4. वाकई!कायल करने वाला । बहुत ही बढ़िया ।

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    1. आदरणीया अमृता दीदी जी
      सुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया

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