Sunday, December 7, 2025

परिदृश्य

हैरत हुई ना किश्तों उधार मिली यादों दरारों में l

इल्तिजा ठहरी नहीं चहरे शबनमी बूँदों दरारों में ll


खोई सलवटें सूने आसमाँ तुरपाई गलियारों में l

छुपा गयी गुस्ताखियां आँचल पलकों सायों में ll


सुरमई बादल पनाह काजल निगाह घनेरो में l

कोई रंजिशें पैबंद ठगी अधखुली कपोलों में ll


बिखरे केशों लिपटी लट्टे झुर्रियां दर्पण लहरों में l

तस्वीरें धुंधली बदलती लकीरें हाथों मेहंदी में ll


ख्वाबों ख्यालों परिदृश्य फिराक दीवारों परिधि में l

लकीरें हाथों मिट गयी उलझन भरे अंधियारों में ll

14 comments:

  1. बहुत सुंदर पंक्तियाँ

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    1. आदरणीया डॉ. मोनिका दीदी जी
      सराहना सम्पन्न अनमोल प्रतिक्रिया के हृदयतल से आभार आपका ।

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  2. Wahh
    अलग और खूबसूरत अंदाज

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    1. आदरणीय भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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    1. आदरणीय सुशील भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  4. अति सुन्दर सृजन ।

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    1. आदरणीया मीना दीदी जी
      आशीर्वाद की पुँजी के लिए तहे दिल से आपका आभार

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  5. अति सुन्दर सृजन ।

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    1. आदरणीया मीना दीदी जी
      आशीर्वाद की पुँजी के लिए तहे दिल से आपका आभार

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  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 10 दिसंबर 2025 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आदरणीया पम्मी दीदी जी
      मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए तहे दिल से आपका आभार

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    1. आदरणीय हरीश भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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