Sunday, July 19, 2009

दर्द

ये रबा इतना मुझे जरुर बता

मेरा मुकद्दर कौन से पल लिखा

हारते हारते जिन्दगी आधी गुजर गयी

मंजिल पास होकर भी दूर चली गयी

दिल को दर्द ऐसा दिया

तेरे सिवा किसी को बया ना कर सका

रोना भी अगर चाहा तो रो ना पाया

जाने कब मेरे सितारे जगमग्येंगे

जाने कब मेरे ख्वाब पुरे होगें

कर्ज के बोझ से अब मुक्ति दे दो

मेरे परिवार के लिए कुछ करने की

मुझ में शक्ति दे दो

हे भाग्य विधाता मेरी भी अरदास सुनलो

मुझको भी अपना सहारा दे दो



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