Wednesday, May 5, 2010

ऐसी डोर

बांधे रख सके हमें अपने दामन से

डोर ऐसी बनी नहीं

परवाने है हम तो

फिर भी शमा हमें जलाती नहीं

कब कहाँ कौन से फूलों पे

हम जैसे भवरों का बसेरा हो

पता नहीं

आज दिल हसीन है रंगीन तितलियों से

कल की हमें फिक्र नहीं

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