अंतर्नाद का नाद हैं ये
ख़ुद से संघर्ष का रणभेदी आगाज़ हैं ये
पल प्रतिपल बदलते विचारों में
सामंजस्य पिरोने का सरोकार हैं ये
महा समर के चक्रव्ह्यु का
यह तो एक अध्याय हैं बस
संयम साधना ब्रह्मास्त्र ही
एकमात्र इस पहेली का राज हैं बस
तपोबल ज्ञान से इसके
लक्ष्य दूर नहीं होगा तब
दृष्टि भ्रम से जब विचलित ना हो पायेगा मन
इसके एकांकित ध्यान केंद्र में ही
समुचित हैं सब आस्था के फल
सब आस्था के फल
ख़ुद से संघर्ष का रणभेदी आगाज़ हैं ये
पल प्रतिपल बदलते विचारों में
सामंजस्य पिरोने का सरोकार हैं ये
महा समर के चक्रव्ह्यु का
यह तो एक अध्याय हैं बस
संयम साधना ब्रह्मास्त्र ही
एकमात्र इस पहेली का राज हैं बस
तपोबल ज्ञान से इसके
लक्ष्य दूर नहीं होगा तब
दृष्टि भ्रम से जब विचलित ना हो पायेगा मन
इसके एकांकित ध्यान केंद्र में ही
समुचित हैं सब आस्था के फल
सब आस्था के फल
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-09-2017) को "कैसा हुआ समाज" (चर्चा अंक 2722) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया
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