Sunday, September 24, 2017

ख़ुमारी

नींद को जागते रहने की ख़ुमारी लग गयी

नयनों को जाने कौन सी बीमारी लग गयी

बोझिल पलकों को तारों संग

चाँद को निहारने की आदत लग गयी

फ़ितरत नींद की ऐसी बदल गयी

जाने इसे किसकी नज़र लग गयी

खुली शबनमी पलकों की सिफ़ारिश भी यूँही रह गयी

बिन करवटें ही आँखों में रात ढल गयी

नींद की मासूमियत तन्हाइयों में जाने कहा खो गयी

हर रात एक सदी सी

लम्बी दासताँ बन गयी

नींद को जागते रहने की ख़ुमारी लग गयी

ख़ुमारी लग गयी

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-09-2017) को
    "माता के नवरात्र" (चर्चा अंक 2738)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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