नींद को जागते रहने की ख़ुमारी लग गयी
नयनों को जाने कौन सी बीमारी लग गयी
बोझिल पलकों को तारों संग
चाँद को निहारने की आदत लग गयी
फ़ितरत नींद की ऐसी बदल गयी
जाने इसे किसकी नज़र लग गयी
खुली शबनमी पलकों की सिफ़ारिश भी यूँही रह गयी
बिन करवटें ही आँखों में रात ढल गयी
नींद की मासूमियत तन्हाइयों में जाने कहा खो गयी
हर रात एक सदी सी
लम्बी दासताँ बन गयी
नींद को जागते रहने की ख़ुमारी लग गयी
ख़ुमारी लग गयी
नयनों को जाने कौन सी बीमारी लग गयी
बोझिल पलकों को तारों संग
चाँद को निहारने की आदत लग गयी
फ़ितरत नींद की ऐसी बदल गयी
जाने इसे किसकी नज़र लग गयी
खुली शबनमी पलकों की सिफ़ारिश भी यूँही रह गयी
बिन करवटें ही आँखों में रात ढल गयी
नींद की मासूमियत तन्हाइयों में जाने कहा खो गयी
हर रात एक सदी सी
लम्बी दासताँ बन गयी
नींद को जागते रहने की ख़ुमारी लग गयी
ख़ुमारी लग गयी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-09-2017) को
ReplyDelete"माता के नवरात्र" (चर्चा अंक 2738)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'