Tuesday, September 12, 2017

खता

खायी हैं चोटें बहुत इस दिल ने

खता हमारी क्या

दिल किसी का तोड़ दे

माना जज्बातों का कोई मौल नहीं

पर दिल के भँवर के आगे

इंकार पे जोर नहीं

लब मगर कह ना पाए वो जज्बात

क्योंकि मशूगल रह गया दिल

निहारने में महताब

निहारने में महताब

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