Tuesday, August 22, 2017

राहें

राहें कुछ ऐसे गुम हो गयी

तन्हा चलते चलते मंजिल भटक गयी

पगडंडी भी कांटो का झाड़ बन गयी

अजनबी सी मानो पहचान बन गयी

चौराहों में चौराहों की जैसे राह सज गयी

कदम जिस ओर चले

तक़दीर वो राह भटक गयी

राहों की भूलभुलैया ने कायनात बदल दी

आती जाती मुड़ती राहों ने

सपनों के सौदागर की राह बदल दी

तन्हाइयों के आलम में

राहें कुछ ऐसे गुम हो गयी

ज़िंदगी खुद से अंजान हो गयी

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