Saturday, March 13, 2021

पैबंद

ज़ख्मों के पैबंद सिलने भटकता रहा मैं l
अश्कों की कभी इस गली कभी उस गली ll 

डोर वो तलाशता रहा ढक दे जो पैबंद की रूही l 
दिखे ना दिल के जख़्म छुपी रहे सिलन की डोरी ll

ख़ामोशी लिए लहू रिस रहा तन के अंदर ही अंदर l
बुझा दे प्यास पानी इतना ना था समंदर के अंदर ll

मरुधर तपिश सी जल रही तन की काया l
बरगद से भी कोशों दूर थी चिलमन की माया ll

दृष्टिहीन बन गूँथ रहा ख्यालों की माला l
मर्ज़ निज़ात मिले भटकते रूह को साया ll

टूट गया तिल्सिम ताबीज़ के उस नूर का भी l 
बिन आँसू रो उठी पलकों पे जब तांडव छाया ll

लुप्त था धैर्य विश्वास ना था अब गतिमान l
डूब गया प्रहर डस गया इसको तम का आधार ll

सी लूँ पैबंद किसी तरह दिल के बस एक बार l 
छोड़ जाऊ तन का साया इसका फिर क्या काम ll   

42 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 14 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आदरणीय दिग्विजय जी
      मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार

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  2. बहुत सुन्दर रचना, बधाई.

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    1. आदरणीया जेन्नी दीदी जी
      रचना पसंद करने के लिए आपका शुक्रिया
      सादर

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    1. आदरणीय शिवम् जी
      मेरी रचना पसंद करने के लिए शुक्रिया
      आभार

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    1. आदरणीय विमल भाई साब
      हृदयतल से शुक्रिया
      सादर

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  5. वाह!!!
    बहुत सुन्दर...।

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    1. आदरणीया सुधा दीदी जी
      हृदयतल से शुक्रिया
      सादर

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  6. सुंदर भावों का अनूठा सृजन..

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    1. आदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
      हृदयतल से शुक्रिया
      सादर

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  7. आदरणीय सुशील भाई साब
    हृदयतल से शुक्रिया
    सादर

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  8. वाह, सुन्दर सृजन, सुन्दर भाव

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    1. आदरणीया सुरेंद्र जी
      हृदयतल से शुक्रिया
      सादर

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  9. बेहतरीन रचना, खूबसूरत भाव, बहुत बहुत बधाई हो, हार्दिक आभार,ब्लॉग पर आने के लिए तहे दिल से शुक्रिया

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    1. आदरणीया ज्योति दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए हृदयतल से शुक्रिया
      सादर

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  10. ओह , अश्कों और ज़ख्मों से लबरेज़ रचना ।
    मार्मिक भाव ।

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    1. आदरणीया संगीता दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए हृदयतल से शुक्रिया
      सादर

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  11. सुन्दर भाव प्रस्तुति

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    1. आदरणीया जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए हृदयतल से शुक्रिया
      सादर

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    2. सी लूँ पैबंद किसी तरह दिल के बस एक बार
      छोड़ जाऊ तन का साया इसका फिर क्या काम।
      भावों की प्रस्तुति अच्छी है।

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    3. आदरणीया मीना दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए हृदयतल से शुक्रिया
      सादर

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  12. सी लूँ पैबंद किसी तरह दिल के बस एक बार l
    छोड़ जाऊ तन का साया इसका फिर क्या काम ll ।बहुत सुंदर दिल को छू लेने वाली लाईने आप की लेखनी को नमन ।

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    1. आदरणीया मघुलिका दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए हृदयतल से शुक्रिया
      सादर

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  13. बहुत बढ़िया लिखे हो मनोज जी।

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    1. आदरणीय विरेन्द्र जी
      हृदयतल से शुक्रिया
      सादर

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  14. Replies
    1. आदरणीया उर्मिला दीदी जी
      हृदयतल से शुक्रिया
      सादर

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  15. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय ।

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    1. आदरणीय आलोक जी
      हृदयतल से शुक्रिया
      सादर

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  16. वाह मार्मिक चित्रण

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    1. आदरणीया सरिता दीदी जी
      हृदयतल से शुक्रिया
      सादर

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  17. उम्दा अभिव्यक्ति ।

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    1. आदरणीया अमृता दीदी जी
      आपका दिल से शुक्रिया
      आभार

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  18. सी लूँ पैबंद किसी तरह दिल के बस एक बार
    छोड़ जाऊ तन का साया इसका फिर क्या काम।
    बहुत ही भावपूर्ण लाजवाब सृजन।

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  19. बहुत भावपूर्ण ... खूबसूरत शेर हैं सभी ...

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    1. आदरणीय दिगम्बर जी
      हृदयतल से शुक्रिया
      सादर

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  20. आपकी इस कविता का पहला छंद ही उस दर्द को बयां कर देता है मनोज जी जो इसके हर लफ़्ज़ में भरा है : ज़ख्मों के पैबंद सिलने भटकता रहा मैं, अश्कों की कभी इस गली कभी उस गली । मैं उन जज़्बात को महसूस कर सकता हूँ जिनसे ये अशआर वाबस्ता हैं ।

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    1. आदरणीय जीतेन्द्र भाई साब
      शब्द कम है आपका शुक्रिया कहने को, दिल से आभार

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  21. बेहतरीन लेखन..
    सादर प्रणाम..

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    1. आदरणीया दीदी जी
      आपका दिल से शुक्रिया
      आभार

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