Saturday, May 15, 2010

पन्ने

गुजरे कल की किताब खोलना नहीं चाहता

गुजरा कल अच्छा ना था

एक डरावना सपना था

इसलिए वक़्त के गर्द से दबी किताबों के पन्ने

पलटना नहीं चाहता

जब कभी चलती है पुरानी यादों की आंधी

पन्ने लगते है ऐसे फरफराने

देख के जिसको रूह भी सहम सी जाती है

एक पल के लिए साँसे भी थम सी जाती है

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