Saturday, April 24, 2010

चुपके से

ढूंड रही है नजरे

बिछा के पलके

पर अभी तलक नज़र आयी नहीं

साये की झलक भर

अनजाना अजनबी वो साया

चुपके से जो सपनों में चला आया

नींद हमारी चुरा ले गया

अब तो बस बैचैन है राते

करवट बदलते बीत रही है राते

No comments:

Post a Comment