Saturday, August 11, 2018

इश्क़ का नशा

शाकी का सुरूर चढ़ ना पाया

मोहब्बत का रंग उतर ना पाया

जाम जो पिला दिया नयनों ने

होश ग़ुम हो गए

मदहोशी के आँचल में

आलम इश्क़ के नशे का ऐसा जमा

बिन पिये ही दिल थिरकने लगा

ख़ुमारी इस लत की ऐसी लगी

हर आँखे मदिरा

और हर बाहें मधुशाला लगने लगी

तवज्जों मोहब्बत को क्या मिली

काफ़ूर मदिरालय की वयार हो गयी

जैसे सूरा के नशे से भी गहरी

इश्क़ के नशे की खुमारी चढ़ गयी

खुमारी चढ़ गयी




4 comments:

  1. आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (13-08-2018) को "सावन की है तीज" (चर्चा अंक-3062) पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. तवज्जों मोहब्बत को क्या मिली

    काफ़ूर मदिरालय की वयार हो गयी


    waaah. bahut khoob

    ReplyDelete