Saturday, August 25, 2018

ग़ज़ल

दिल आज फ़िर कुछ कह रहा हैं

चल मैं और तुम कुछ लिखतें हैं

गुजरे पलों का हिसाब ग़ज़लों में करते हैं

अधूरी रह ना जाये कोई नज़्म

इसलिए क्यों ना फ़िर

शायरी के अल्फजाओं में जिन्दा रहते हैं

झलक दिख रही हो दर्पण में जैसे

चमक रही चाँदनी सितारों में जैसे

छलक जाये क्यों ना फिर मैं और तुम

गीत बन बरसने बेताब तरन्नुम में

हर महफ़िल सज जाये तेरे मेरे गीतों में

निहारे फ़िर जब कभी उस पल को

निखर आये क़ायनात सारी

ग़ज़ल के सिर्फ एक ही लफ्जों में

ग़ज़ल के सिर्फ एक ही लफ्जों में

1 comment:

  1. बहुत खूब।

    शायरी के अल्फजाओं में जिन्दा रहते हैं

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