Sunday, December 21, 2025

पंजरी

सर्द हवाएँ ख़यालों होले से झूमकौ फुसफुसा गयी एक मिठी सी राग l

नाजुक हवाएँ पूछ रही पता उस अक्स तलब जिसकी थी कभी पास ll

 

कानाफूसी रूमानियत थामी थी सोंधी सोंधी पंजरी सी मुस्कान l

परिचय पूछ रहा अल्हड काजल कहा छुपी थी आँचल मनुहार ll

 

सौम्य काव्यअग्नि रूप सृष्टि माथे ललाट प्रतिबिंब चंदन आकार l

गुँथे घूंघट पीछे सहज संक्षेप लिख गयी एक सांची चंद्र आधार ll

 

उलझा बिखरी केश लट्टे वेणी सी सज गयी सुरमई साँझ कर्णताल l

सलाह चंचल गुदगुदी पायल सुना रही कोई सुन्दर कहानी संसार ll

 

कानाफूसी बीचों बीच थम थम बरसी जोगन सी मेघ सुर करताल l

ओस बूँदों ढ़की पलकें शागिर्द सी नाच उठी नींद सिरहानों साथ ll

 

 

1 comment:

  1. प्रकृति का सुंदर चित्रण करती भावपूर्ण रचना मुग्ध कर जाती है ।

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