RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Friday, November 27, 2009
दिल की चोर
ढूंडी मंजिले बहुत
तलाशी राहें अनेक
सब आकर थमी
तेरे ही आगे
क्यो कुदरत चाहती है
तेरा मेरा साथ
क्यो ठहर जाते है कदम
आके तेरे ही पास
क्या है जो बाँध रही
तेरी मेरी डोर
क्या तू ही है
मेरे दिल की चोर
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