POEMS BY MANOJ KAYAL
पहले तुम ताजमहल लगती थी
अब खंडहर दिखती हो
उम्र हावी होने लगी
बुनियाद कमजोर होने लगी
स्वरुप तुम अपना खोने लगी
झुरिया चहरे पे छाने लगी
तू मौत को इस्तकबाल करने लगी
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