Friday, September 4, 2009

सोलह श्रृंगार

कर के सोलह श्रृंगार

प्रियतमा चली साजन के द्वार

मन में रंग बरसे हजार

मिलन की बेला आई है आज

नयनो में सपने लिए अपार

मिलन को व्याकुल है मन आज

बड़े दिनों बाद खुसिया छाई अपार

साजन की बाहों को मन ऐ तरसे बार बार

कर के सोलह श्रृंगार

गौरी चली पीये के द्वार

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