Sunday, October 25, 2009

मुकर्र

हँसते रहो हँसाते रहो

खिलते रहो खिलखिलाते रहो

क्योकि इस पल है जिंदगानी

उस पल का ठिकाना नही

कुदरत ने बुलाने की लिए

कब का वक्त मुकर्र किया

कोई ये जाने नही

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