Monday, December 27, 2021

प्रतिलिपि

प्रतिलिपि लिखी जिन गुमनाम गुलजारों की l
मिली वो इस अंजुमन के प्यासे रहदारों  सी ll

सूनी दीवारें सजी थी किसी दुल्हन सेज सी l
कुरबत जिसके उतर आयी थी महताब बारात की ll

मशरूफ थी रूह इस कदर इनायतें रैना इंतजार में l
शुरूर नूर लिहाज का गुम हो गया इस कायनात में ll

बिसर अलंकार शब्दों मखमली ताबीर का l
रंग गया अम्बर स्वप्निल रंगदार घटाओं का ll

अहसास फूलों सी नाजुक इन पंखुड़ियों का l
तितलियाँ उड़ा गया इन पलकों नींद का ll

मीठी सी जिरह इसकी जेहन गहराई में l
लिखती हर पल नयी इबादत गुमनामी में ll

प्रतिलिपि लिखी जिन गुमनाम गुलजारों की l
मिली वो इस अंजुमन के प्यासे रहदारों  सी ll

Sunday, December 5, 2021

मुकाम

सफर के हर पड़ाव कदम मुकाम बदलते गये l
निशाँ अपनी फितरतों के हर और छोड़ते गये ll

इतने लग गये इसके दामन के दरमियाँ  बदरंगें से दाग l
मैला हो आँचल तार तार हो गये इसके पहलू एक साथ ll

नादानीयॉ उस रुखसार की शिकस्त ऐसी दे गयी l
अधूरे मशवरे की खींचतान में आबरू फिसल गयी ll

अवरुद्ध संकरी गलीया भटक गयी थी सफर की डोर l
चाँद वो नजर आया नहीं छुपा था जो बादलों की ओट ll

धुन्ध में लिपटी थी फलक तलक इसकी जो बारिशें l
धुँआ धुआँ हो बिखर गयी थी गुल की सारी नवाजिशें ll

फेहरिस्त लंबी थी इस सफर के उन गुलजारों की l
भटकते कदमों के घायल गुलजार अरमानों की ll

पग पग स्वाँग रचा रखा था राहों ने हर उस मोड़ पर l
भ्रमित हो मुकाम बदल लिया क़दमों ने जिस ढोर पर ll

ना मिटने वाले क़दमों के निशाँ छूटते गए हर तरफ l
मुकाम बस एक मय्सर ना हुआ सफर के इस सफर ll

Friday, December 3, 2021

गुनाह

ज़िक्र सिर्फ और सिर्फ तेरा ही आया बार बार I
मेरे हर गुनाह में तेरा ही नाम आया हर बार II

तितलियाँ जो उड़ाई थी तूने रंगीन फ़सनों की I
आगाज़ वो कभी बनी नहीं इनके अरमानों की II

पँख खोल परवाज़ भर उड़ जाने बेताब इन परिंदों को I
आसमाँ वो मिला नहीं कबूल करले जो इन परवानों को I 

ना जाने कैसे बिन पते का बंद तेरा वो खत I
मोहर सा लिफाफे से चिपका गया मेरा मन II

तेरी पर्दानशीं आँखों के उस सम्मोहन भरे जादू से I
अछूता रह ना पाया गुनाह अंजाम अदा करने से II

खामोशीयों पे मेरी पहरे लगे थे तेरी यादों के सभी I
तेरे फैसले में रजा मेरी भी थी तेरे लिए ही शामिल II

परत दर परत ताबीर गुनाह की ज्यों ज्यों खुलती गयी I
इस गुनाह रिश्ते की चर्चा सरेआम होती चली गयी II

Saturday, November 20, 2021

शिद्धत

शिद्धत से तलाशता फिरा जिस सकून को l
मुद्दतों बाद थपकी दे सुला गया जो मुझको ll 

सनक थी इसके दुलार के उस मीठी खनकार की l
नींदों के आगोश में लोरी सुना सुला गयी जो मुझको ll

अस्तित्व ख्वाबों की उन बिछडी खोई नींदो का l
वज़ूद ढूंढ रही अपना पलकों में ढलती रातों का ll

दस्तक थी उन उनींदी उनींदी दरख़ास्तों की l
दस्तखत दे गयी पलकों पे जो अपने नामों की ll

मुनासिब थी वर्षों से जगी इन पलकों की भी रजामंदी l
झपकी इसकी पल में दे गयी जीवन भर की मस्ती ll

लयवद्ध हो गया मेरा सम्पूर्ण सपनों का शहर l
पहलू में नीँदों की आ मिला जो मुझसे बिछड़ा पहर ll

मग्न हो गयी पलकों बीच आँखे इस कदर l
बेखबर बेसुध हो सो गयी सपनों की डगर ll  

Friday, November 12, 2021

ढलती छावं

खड़ी थी वो लिए उन सुहानी यादों को उस मोड़ पर l
एक ताज महल मैं भी गूँथ लूँ लम्हों के जिस मोड़ पर ll

नये रंग में फिर से लिखूँ हर्फ की यह नयी ग़ज़ल l
की महताब भी मेहरम हो आये इसकी हर नजर ll

सदियों से छुपा रखे उन राज़दार सूखे गुलदस्तों से भी l
हर अंदाज़ में महके अल्फ़ाज़ ताजे हसीन फूलों सी ll

कच्चे धागे से बँधी इस प्रीत की बंधन डोर को l
ताबीज़ बना पहन लूँ इन मन्नत धागों डोर को ll

मोहलत थोड़ी सी ख़रीद लूँ उस आसमाँ खास से l
अर्से बाद बेताब हो रहे अश्रु धारा नयनों साथ में ll

उकेर लूँ इस चहरे को पूरी तरह मेरे आँगन द्वार में l
खो ना जाय फिर कही साया यह ढलती छावं में ll

खो ना जाय फिर कही साया यह ढलती छावं में ll
खो ना जाय फिर कही साया यह ढलती छावं में ll

Tuesday, November 9, 2021

अंतर्ध्वनि

निकला बेचने रूह को जिस्म के जिस बाजार l
बिन सौदागर मौल हुआ नहीं उस सरे  बाजार ll 

अंतर्द्वंद विपासना जलाती रही चिता कई एक साथ l
पर हर कतरे में पाषाण सी थी इस रूह की रुई राख ll

मंडी तराजू के उसके बदलते मंजर के आगे l
भाव शून्य सी कोने में थी काया खड़ी सकुचाय ll

दीवार थी शीशे की पूरी गर्त से ढकी हुई l 
अंधकार की छाया थी दूजी और खड़ी ll

पैबंद में लिपटी रूह की यह स्याह घडी l
बाट जो रही यह बिकने नजरों की गली ll 

विच्छेद दास्तानों भँवर में भटकी अटकी रातों की l
फेहरिस्त दीवानों की इसकी जुदा औरों से थी ll

आज इस महफ़िल में तन्हा थी रूह अकेली l
कद्रदान कोई आया नहीं जीने इसे इस कोठी ll 

जिस्म की मंडी में नीलाम हो ना पायी l
इस रूह की बिलखती यह अंतर्ध्वनि ll 

Monday, November 1, 2021

आईने के रंग

रिवाजों से परे इश्क लगा जब से l 
गली के मोड़ वाली उस लड़की से ll

फितूर बदल आईने ने अजनबी बना दिया l 
हमें अपने ही शहर के गली चौराहों में ll

एक पल उसे निहारने के अंदाज़ से l 
तकाजा बदल गया उसके पहनाव में ll

उसके बरामदे से आती आहटों पर l 
निगाहें अटकी होती उसके इंतजार में ll

गुजरती जब वो मुस्काती हुईं पास से l 
थम जाती साँसें उस एक पल आस में ll

गुलाब जो लिया थमा दूँ उसके हाथों में l 
गजरा सजा दूँ उसके लंबे लंबे बालों में ll

उलझा बुनता रहाअपने खयालों के जाल l 
पर कह ना पाया उससे कभी दिल की बात ll

अधूरा रह गया पैमाना इस इश्क का l 
छलक ना पाए संग उसके इश्क के जाम ll

दस्तूर रंग सब बदल गया उस आईने का l 
इश्क हुआ जब से गली वाली उस लड़की साथ ll

Thursday, October 28, 2021

चाँद और इश्क़

देखा हैं चाँद को चुपके से अकेले में मुस्काते हुए l  
रूप बदल बदल चाँदनी को इसकी इतराते हुए ll

दीवाने हुए हम भी उस चौदहवीं के चाँद के l
ज़माना आतुर जिसके एक दीदार के लिए ll

फलक तलक गूँज रही इसकी ही गूँज हैं l
अर्ध चाँद का अक्स इश्क़ का ही नूर हैं ll

ग्रहण लगे चाँद की छाया, जब से देखि पानी में l 
मोहब्बत हो गयी तबसे इसके काले काले तिल से ll

दिल लगा जब से इसके दिलजले ख्वाबों से l
तन्हा रह गए हम भरी सितारों की महफ़िल में ll

जोरों से दिल हमारा भी खिलखिला उठा तब l
पकड़ा गया चाँद जब चोरी चोरी निहारते हुए ll

रुखसार से अपने बेपर्दा होते हुए देखा है हमने l
चाँद को चुपके चुपके अकेले में मुस्कराते हुए ll

चाँद को चुपके चुपके अकेले में मुस्कराते हुए l
चाँद को चुपके चुपके अकेले में मुस्कराते हुए ll

Wednesday, October 20, 2021

पदचाप

बारिश में उसके पदचापों की सुर ताल l
खनक रही जैसे अशर्फियों की तान ll

उतावले बादल आतुर घटाओं के साथ l 
रुनझुन रुनझुन बरसा रहे मेघों अंदाज़ ll

उलझता चला गया छोटा सा दिल ए बेक़रार l 
देख उसकी भींगी भींगी सुलझी सुलझी चाल ll  

जुल्फों से उसके टपकती पानी की लार l
जी चुरा ले गयी हौले से होठों के अल्फ़ाज़ ll

मयूर मन नाचते उनके क़दमों की आवाज़ l
घोल रही बारिश में पाजेब की मीठी झंकार ll

तरंग सी इठला रही इस बारिश की बूँदे कुछ खास l 
मिल सिमट रही उनकी झुकी पलकें जब आस पास ll 

बारिश में उसके पदचापों की सुर ताल l
खनका रही इस रूमानी रूह के सुर ताल ll

खनका रही इस रूमानी रूह के सुर ताल l
खनका रही इस रूमानी रूह के सुर ताल ll
 

Wednesday, October 13, 2021

टेलीफोन

टेलीफोन नंबर उनका नहीं मेरे मोबाइल में l
डायल करता हूँ जब कहीं ओर किसी ओर को ll 

ना जाने कैसे बार बार रोंग नंबर डायल हो l
फ़ोन फिर उस कायनात को ही लग जाता हैं ll    

तस्वीर उसकी इस जेहन से हटती ही नहीं l
यादें भी उसकी इस चिलमन से जाती नहीं ll 

कुदरत ने भी जाने कैसा स्वांग रचा रखा हैं l
काफ़िर बना मुझको ही बदनाम कर रखा हैं ll

सुन उसकी आवाज़ बैचैन हो मैं बुत सा बन जाता हूँ l 
असहज हो अपने खामोश लबों से दूर चला जाता हूँ ll 

फ़ोन कट जाने के बाद भी घंटों पागलों की तरह l
उसे कानों से लगा आवाज़ उसकी सुना करता हूँ ll 

आखिर समीकरण यह इतना उलझा उलझा सा क्यों हैं l
मेरी टेलीफोन डायरी में उनका नंबर छिपा किधर को हैं ll 

सदियों जिससे स्वप्न में भी हुई नहीं कोई मुलाक़ात l 
रोंग नंबर डायल हो क्यों फ़ोन उसका ही लग जाता हैं ll

Sunday, October 10, 2021

कयास

अर्सा एक लम्बा गुजर गया उनसे मुखातिब हुए l
महताब वो भी कभी पिघला होगा दीदार के लिए ll

रंगीन यादों की अज़ीज़ ख्यालातों दर्पण में l
टकरा गए वो एक रोज नदी के उस मुहाने पे ll 

अक्सर मिला करते थे चाँद चकोर जिस किनारे पर l 
लिखने नाम अपना पानी की उन मचलती दीवारों पर ll

छुपी थी हया रुखसार की उन सुहानी वादियों में l
बादलों की ओट से झाँकती शबनमी आँखों में ll

हलकी हलकी मधुर दिल की वो चितवन सी आवाज़ें l
रूहानियत बरसाया करती थी जो उन रूहानी रातों में ll 

यूँ अचानक यादों में उनका फिर से आ बस जाना l
खोल झरोखें परछाई बन उनका फिर उतर आना ll 

कयास ना था अहसास मीठा सा इतना अपने पास था l 
फासलों में भी अहसास फासलों का दूर तलक ना था ll

अर्सा एक लम्बा गुजर गया उनसे मुखातिब हुए l
महताब वो भी कभी पिघला होगा दीदार के लिए ll
    

Monday, September 27, 2021

अर्ज़ियाँ

उस अधूरे बेरंग बिखरे पते पर l
अर्ज़ियाँ डाली इन तन्हाइयों ने ll

आहटें हलकी थी इनके अल्फ़ाज़ों की l 
दस्तक चुप चुप थी इनके हुँकारों की ll

फिरा ले उन्हें डाकिया हर गली गली l
मिला ना ठिकाना उसे किसी गली भी ll 

सादे कागज़ बिन कलम लिखी लिखावट l 
जुड़ी हुई थी यह दिल लहू अक्षरों नाज़ से ll

वसीयत यह उस विरासत अकेली की l
मर्म जब जब पढ़ूँ उस रात अकेली की ll

नदारद आकांक्षाएँ इन खोई अर्जियों की l 
ढूँढती फिर रही पता अपनी मर्ज़ियों की ll

सो गुम हो गयी थी अर्ज़ियाँ भी उस पते की l 
तन्हाईयों ने भेजी उस अधूरे बिखरे पते की ll


 

Friday, September 24, 2021

एकाकी

हल्के हल्के पदचापों की आहटें l
थिरका रही बावरे मन की आयतें ll 

दस्तक दे रही उस परिंदे घरोंदों को l
आ ढहा जा इस एकाकी दीवारों को ll

कटे पर बेताब हूँ परवाज़ भर जाने को l
आतुर हूँ छूने अम्बर के उन बादलों को ll

सूख ना जाए पानी कहीं इन बरसातों के l
लिपट अंग भिगों दे आँचल अरमानों के ll

हिज़्र में जिसकी कितनी सदियाँ गुज़र गयी l
मुलाक़ात उस खुदा से एक मुकम्मल हो जाये ll

संग तारुफ़ उनके मिज़ाज़ की शरीक ऐसी रहे l
इत्तेफाकन ही मिल जाये वो इस अंजुमन में ll

आवाज़ दे रही एकाकी पिंजरें की दरों दीवारें l 
बसेरा बन बस जाये उनकी यादों के साये ll


Friday, September 17, 2021

मौन स्तब्ध

मैं मौन स्तब्ध नथनी से जो टकरा गया जब l
ज़िक्र अल्फ़ाज़ों में उसका ही ठहर गया तब ll 

बारिश रहमत मोहब्बत की लगी बरसने तब l
पायल उसकी मुस्करा दिल तार छू गयी जब ll

अजनबी आँखों से छलका गयी ऐसा मीठा ज़हर l
रोम रोम तर गया उस मदहोश मधुशाला मयस्सर ll

हौले से फुसफुसा कर्णफूल बजे जो एक साथ l
छेड़ गए दिल की दरिया में उफनते तरंग राग ll 

शायर की शायरी सी खनकती हाथों की उसकी चूड़ियाँ l
दिवा स्वप्न सी रचा गयी रंगीन तिल्सिम की दुनिया ll

उलझी उलझी लटों के केशों में सजी वेणी उसकी l
पूर्णविराम नवाज़ गयी मेरे अधूरे यौवन अंक को ll

सुध बुध खो बूत बन खो गया उस मधुवन में l
निगाहें पलकों में कैद हो गयी जिस उपवन में ll

Sunday, September 12, 2021

सहर

उनींदी आँखों लिखने बैठा तेरी सहर की कली l 
नज़्म ढलती गयी खुद ही नज़र की इस कली ll

जादू कर गयी तेरे ताबीज़ की वो कच्ची डोरी l
बंधी थी जिससे तेरे संग मेरे रूह की डोरी ll  

सुन तेरे पाक इबादत के नूरों को इस घड़ी l
सिमट मिटते गयी हर फासलों की ये घड़ी ll

ओश शोखियाँ सी इठलाती नाज़ुक तू तितली l 
शिकायतें जो उड़ा ले गयी ग़ज़ल की इस गली ll

खुमारी लगी दिल्लगी एक मासूम सी कली l
तालीम आलम छा गयी पलकों पे दिलकशी ll  

रंगत बरस रही लफ्जों से अजान सी मीठी l
खोये अल्फ़ाज़ों से जुड़ गयी लबों की खुशी ll

लिखने बैठा तेरी सहर सफर की इस गली l
उनींदी आँखे खुली तेरे ही नयनों की गली ll

Thursday, September 9, 2021

दीमक

बदल गयी वो सारी गुलज़ार गालियाँ आज l
मशहूर थी इश्क़ चर्चे से जो कभी सरेआम ll 

दीमक लग गयी उन यादोँ की रंगत को आज l
बहा ले गयी थी अश्क जिसे कभी अपने साथ ll

वीरान अकेला आज उस मकान का वो आलिंद l 
कभी जिसके नूर से चमकती इसकी न्यारी बाती ll

अब ना हवाओं में वो मर्ज ना लबों पे उन लफ्जों का साथ l
वास्ता जिनकी तारुफ़ का गुज़रा था जिन गलियों के पास ll

मेला जमघट लगा था कभी दिलजलों का जहाँ l
दास्ताँ कहने को बचा रहा नहीं वहाँ कोई निशाँ ll

ढह गया उजड़ा खंडहर बदलते वक़्त के साथ l
दीमक लगा गया सहेजी पुरानी यादों के पास ll 

दीमक लगा गया सहेजी पुरानी यादों के पास l
दीमक लगा गया सहेजी पुरानी यादों के पास ll

Tuesday, September 7, 2021

वजूद

ज़िक्र एक उसका ही था मेरे जनाजे में l
सौदा दिल से कफ़न का कर आयी थी जो ll

सौगात आँसुओं को मिट्टी के दे आयी थी जो l
तालुक उस पर्दानशीं से इस काफिर का ना हो ll

कोई मीठा झोंका थी या किसी फरेब का साया l
हसीन सी दास्तां थी उसकी नज़रों का साया ll

उधार थी क़िश्तें बहुत उस नूर शबनम की l
महरूम थी उसकी एक झलक से मेरी काया ll

तकरीर रंगीन थी उसके ताबीज़ के गुल से l
तहरीर सजी थी जैसे उसके जन्नत गुल से ll

मशरूफ रूह उस खाब्ब में खोई थी इस कदर l
निगाहें शगुन पैमाना बन गयी थी उस वक़त ll

फक्कत वो ऐसी गहरी नींद सुला गयी मुझको l
वजूद काया ताबूत में सिमटा गयी मुझको ll

Monday, August 23, 2021

नदियाँ

ए नदियाँ अभी ज़रा तुम ठहरो l
आतुर सागर अभी मचल रहा हैं ll

तुम उतावली अधीर सागर संगम को l
सागर व्याकुल लहरों में सिमट आने को ll

अस्तित्व विलुप्त हो जाओगी दरिया तुम l 
प्यासा हैं सागर कंठ तृप्त इसे कर जाने दो ll 

प्रवाह में प्रचंड आवेग लिए सागर से l
तेरी शान्त प्रकृति कुरूप होने ना दो ll

खुमार सागर प्रलय मदहोशी का छाया हैं l
वही तेरी लालिमा मंजर सकून का साया हैं ll

साँझ बेला जब सागर करीब इतराएगी l
हौले से पानी तेरी कानों फुसफुसाएगी ll

बह चली आना बना अपने आँचल को पतवार l
दामन तेरा बन निखर आयेगा जैसे संगम द्धार ll

कुछ पल को थाम ले नदियाँ तेरी रफ़्तार l
लौट आने दो सागर को भी तट के पास ll  

Saturday, August 21, 2021

अंजुमन

मशरूफ ना हो जिंदगी तुम इतनी भी l
फुर्सत मिले ना प्यार को इतनी भी ll

तरसती रह जाएँ शोख़ियाँ दिल की l 
क़ुरबत उस हसीन गुलमोहर आने की ll 

साज बन जो ढली हो सरगम सी l
ग़ज़ल बन निखरों अल्फाजों की ll

मुराद नायाब इस अंजुमन की l
खलिश जवां जवां मुख़्तसर की ll

गुज़ारिश हैं करवटें बदलते रातों की l  
खुलूस रातें बहके हो थोड़ी रूमानी सी ll

महके हिना गुलबदन काफिर की l
फ़रियाद कर रही रूह साँसों की ll

Saturday, August 14, 2021

ताजमहल

रुसवा हो वो जो छोड़ गए थे बीच मझधार I
पिरोयें थे ताजमहल के जो सुनहरी खाब्ब II

कैसे फिर यह दिल सिर्फ किसी एक को चाहे I 
रंजिशें कर ली जब अरमानों ने खुद के साथ II

चाँद भी इस डगर हो गया खुद से बेनक़ाब I
टूट बिखरा गया तारें का रूमानी मेहताब II   

रंगे थे आसमां जिनकी ग़ज़लों से सुबह शाम I 
नाम कर गयी वो इन्हें किसी काफिर के नाम II

तन्हा छोड़ रूह उसकी चले जाने के बाद I
दिल हो गया ए तवायफ़ के घराने समान II 

महरूम हो गयी वादियाँ एक वीराने के साथ I 
मशगूल रह गयी सिर्फ यादें बदनामी के साथ II 

फिक्र अब ना थी इस दिल की दिल के पास I
दफ़न हो गया मकबरे के ताबूत में समाय II 

Wednesday, August 4, 2021

आईना

आईना हमने भी देखा हैं करीब से गुजरते हुए    
तेरी हुस्न तपिश में जल मोम सा पिघलते हुए 

वाकिफ़ ज़माना रहा परदानशीन तेरे हुस्नों अंदाज़ से 
नज़रें मिलायी हटा हिज़ाब सिर्फ तूने दर्पण यार से 

आये तुम जब कभी इस अंजुमन की छावं में 
चाँद ईद का निकल आया जैसे अमवास रात में 

रंगीन चूड़ियाँ काँच की मिली जब काँच से 
चटक गयी कोर आईने की तेरी झंकार से 

सिर्फ तेरा ही चेहरा नज़र आया आईने को 
अपने बदले बदले हुए दर्पण अक्स राग में

टूट बिखरा आईना जब छोटी छोटी धार में  
तस्वीर तेरी ही उभरी तब भी इसके आगाज़ में 

Tuesday, July 27, 2021

बूँदे

बारिश की उन बूँदों की भी अपनी कुछ ख्वाइशें थी l  
ओस बूँदों सी स्पर्श करुँ उसके गालोँ के तिल पास से ll  

मचली थी घटायें भी एक रोज मदहोशी शराब सी l
छू जाऊ बरस संगेमरमर की उस हसीन क़ायनात को ll 

पर चुपके से दबे पावँ बयार एक दौड़ी चली आयी l
संग अपने उड़ा बादलों को आसमाँ शून्य कर आयी ll 

आवारा हो गयी हसरतें बारिश आते आते इस मोड़ पर l  
बिखरा रंग गयी आसमां काले काले काजल की कोण से ll 

धुन लगी थी बूँदों को भी इसी उम्र बरस जाने की l
भींगी भींगी रातों में बाँहों के तन से लिपट जाने की ll    

आतुर थे छिछोरे बादल भीगने उस बरसात में l
घुँघरू बन सज जाने उन सुने सुने पावँ में ll

Wednesday, July 21, 2021

सकून

अजीब सा सकून था झोपड़े के उस खंडहर में l
बिछौने आँचल पसरा देती माँ रोता मैं जब डर के ll

सिरह जाता कौंधने बिजली कभी आधी रातों में l  
सीने से दुबका नींदों में सुला देते थे तब बाबा भी ll

एक अदद टूटी लालटेन ही रोशनी का सहारा थी l 
अँधियारे से लड़ती इसकी कमजोर लौ बेसहारा थी ll 

टपकती छत अँगीठी अक्सर बुझा जाती थी l
माँ फिर भी साँसे फूँक इसको सुलगा लाती थी ll 

मेरे लिए खाट जो बुनी थी बाबा ने अपनी धोती से l
थपकी की थाप लौरी की गूँज छाप दोनों थी उसमें ll

माँ की उस रसोई से भी दुलार ऐसा बरस आता था l 
सूखी रोटी नमक में भी मक्खन स्वाद का आता था ll   

मोहताज़ थी वो झोपड़ी खंडहर एक दरवाज़े के लिए l
फिर भी कोई कमी ना थी माँ बाबा के उस क्षत्रशाल में ll

महसूस हुई ना कभी कोई कमी इसकी धूप छाँव में l 
अजीब सा सकून था उस झोपड़े की दरों दीवार में ll 

मिल जाये वो ही सकून एक बार फिर से l 
रो दिया लिपट यादों की उस तस्वीर से ll 

Sunday, July 18, 2021

अनाम रिश्ते

कुछ रिश्ते अनाम अनजाने से होते हैं l
सिर्फ ख्यालों में सपने पिरोने आते हैं ll

दायरे इनके सिमटे सिमटे नज़र आते हैं l
नींदों में चिलमन इनके गुलज़ार हो आते हैं ll    

तसब्बुर में इनकी खाब्ब ऐसे घुल मिल जाते हैं l 
जन्नत के उन पल खुली पलकें ही सो जाते हैं ll

परछाइयाँ मेहरम इनकी इस कदर चले आते हैं l
धागे रिश्तें इनसे खुद ही खुद जुड़ते चले जाते हैं ll

खाब्ब कभी नींदों से जो खफा हो जाते हैं l
हलचल दिलजलों सी पीछे छोड़ जाते हैं ll

गुज़ारिश रही नींदो की ख़ब्बों के दरमियाँ l 
उम्र मुकमल होती नहीँ इन रिश्तोँ के बिना ll 

आरज़ू इनके साँसों की पलकों के खाब्बों की l
मियाद सजी रहे अनजाने रिश्तों खाब्बों की ll  

Saturday, July 3, 2021

खामोशियाँ

खामोशियाँ कह गयी लब कह ना पाए जो बात l
लफ्ज अल्फाज बिखर उठे पा कायनात को पास ll 

खत नयनों के छलक पढ़ने लगे कलमों के अंदाज़ l
गूँज उठी अजान साँझ की लिए कई सिंदूरी पैगाम ll

लज्जा रही पलकें सुर्ख हो रहे उसके गुलाबी गाल l
दूर क्षितिज पर भी चमक रहा उसका ही आफ़ताब ll 

तहरीर थी दिल अंजुमन में ताबीर जिसकी चाह l
जुस्तजू मयसर हो गयी रूह रूहानी आगोश समाय ll

लहजा तकरीरें दे गयी सौगात एक दूजे के नाम l 
परदे में भी बेपर्दा हो गए उनके नूरों के साज ll

सँभाला था जिस नफासत को नजाकत की तरह l
नज़राना मेहर हो गयी वो दिल रिवायतों की तरह ll

संजीदा थे इस पनघट की बोलियों के पैगाम l
निसार हो उठी शोखियाँ देख चाँदनी इठलाय ll

खामोशियाँ कह गयी लब कह ना पाए जो बात l
लफ्ज अल्फाज बिखर उठे पा कायनात को पास ll

Thursday, July 1, 2021

दर्पण जैसा

सोचा लम्हा एक चुरा लूँ उन हसीन खाब्बों के पल से l
फिसल गए वो हुनर ना आया मुट्ठी को इस पल में ll

वजूद मेरे किरदार का भी कुछ उस दर्पण जैसा l
अक्स निहार छोड़ गए जिसे हर कोई अकेला ll

पिंजरे बंद परिंदा हूँ उन सुनहरे अरमानों का l
पंख मिले नहीं जिसे कभी उन आसमानों का ll   

छू आँचल निकल गयी वो पवन वेग हठेली भी l
गुलशन फिजायें महकी थी कभी जिस गली भी ll

फासला सिमटा नहीं इन हथेली लकीरों का कभी l
अजनबी बन गया दामन खुद का खुद से तभी ll

सौदा रास ना आया अपनी खुदगर्जी से कभी l
बारीकें सीखी थी जिन की मर्ज़ी से ही कभी ll

बैठा हूँ उन टिमटिमाते जुगनुओं सी सर्द रातों में l
चाँद मेरा भी नज़र आयेगा कभी इस मुँडेर की दीवारों पे ll    

Saturday, June 26, 2021

क़िरदार

महफ़ूज थी कुछ यादें वक़्त के उस क़िरदार में l
गुजर गयी बिन बरसे ही आवारा बादल साथ में ll

सफ़र इतना ही था मेरा फ़िज़ाओं के गुलज़ार में l
पतझड़ का मौसम सजा था बहारों के बाग़ में ll

पर कतरे परिंदों सा बंद था ख्यालों के पिंजार में l
चहकी जिसकी बोलियाँ कभी बरगद की शाख में ll

निर्जन सी सपनों की कुटियाँ इस निर्धन के पास में l 
अश्रुओं का मंजर बहा ले गयी यह गुलिश्तां साथ में ll

खाली खाली नींदें सिर्फ़ खाली खाली सौदे पास में l
एकाकी के इस पल में यादें भी नहीं रही साथ में ll

मशरूफ थी जो शोखियाँ कभी गुलमोहर साथ में l
इस अंजुमन खल रही उनकी ही खलिस पास में ll

फरियाद थी महकती रहे यादों की हिना साथ में l
गुज़ारिश रास ना आयी उस काफ़िर को ख्यालात में ll

फ़लसफ़ा मजमून इतना सा ही था मेरे पास में l
यादें सदा हमसफ़र बनी रहे मेरे हर किरदार में ll   

Friday, June 25, 2021

कारीगरी

बड़े ही हुनरमंद थे उनकी कारीगरी के हाथ 
तराशते रहे काँच का दिल पथरों के साथ 

रंज ना हुआ उन हाथोँ को एक पल को भी 
नश्तर सी चुभती रही टूटे शीशे की धार 

दरिया रिस्ते लहू का था बड़ा ही बदनाम 
धड़कनों पे था मौन रहने का इल्जाम

लकीरें हथेलियाँ उकेरी नहीं उन खाब्बों ने 
साँसों का सौदा था जिस अज़नबी खाब्बों से 

थी वो एक बहती मझधार पहेली सी 
कश्ती बहा ले गयी वो दिले नादान की 

रास ना आयी उसे वफायें यार की 
दिल दगा दे गयी उस मेहताब की 

अस्तित्व बिख़र गया टूट काँच के आफ़ताब की 
वो तराशती रही पथरों से दिल चटक धार सी  

Wednesday, June 23, 2021

पैबंद

सुनके उनकी मीठी मीठी बातों को l
बैठ गया पिरोनें रिश्ते धागों को ll

कशीदें अदाकारी हुनर साजों से l
छुपा लूँ पैबंद उलझे धागों से ll

रफ़ू कर फ़िर सी लूँ उन रिश्तों को l
तार तार कर गयी वो जिन रिश्तों को ll 

चुभ रही एक कसक ज़िस्म कोने में l
छलनी हो रही अंगुलियाँ इन्हें सिने में ll 

सिते सिते पैबंद भूल गया पिरोने धागों से l
रिश्तों के धागे सुई की उस महीन कमान में ll

रिहाई ना थी टूटी रिश्तों जंजीरों बाँध से l
जकड़ रखी थी कुछ बंदिशों ने मनोभाव से ll 

रफ़ू हो हो वो बिखर गए पैबंद टाट में l
दुरस्त कर ना पाया इन्हें उलझे तार से ll 

Tuesday, June 15, 2021

सम्मोहन

गज़ब का सम्मोहन उसकी हर बातों में 
दिलकश मीठे मीठे रूमानी अंदाज़ों में 

लफ्जों अल्फाजों की वो सुन्दर जादूगरी 
जुगनू सी चमकती उसके होटों की हसी 

बिन जिसके अर्ध निशा भी गुम अँधेरी सी 
मादक इठलाती चाँदनी करवटें अधूरी सी 

साँझ बेला उसकी कोई तिल्सिम सुनहरी 
पहेली वो इस पल की सम्मोहन अनोखी 

रूहानियत की वो कोई ईबादत नई नई 
नयनों से सजाती कोई धुन नई नई सी 

गिरफ़्त हो चला मन बावरा उसकी हसीं 
घुल गया गुल उसके सम्मोहन की गली 

अंश बिखरा गयी इस डाल उसकी छवि 
कमसिन सी वो मासूम सम्मोहन छवि  

Friday, June 11, 2021

पनाह

फुर्सतों की उनकी भीनी भीनी पनाहगायें l
ठिकाना बन गयी मेरी मंजिलों की भोर ll

भटक रही जो आरजू उल्फतों में उलझी कहीं ओर l  
छू गयी उस राह पुँज को अदृश्य शमा की एक छोर ll 

अनबुझ पहेली थी उसके बिखरे बिखरे लट्टों की ढोर l
संदेशे खुली खुली जुल्फों के जैसे काली घटाएँ घनघोर ll

जुदा जुदा लकीरें हाथों की सलवटें माथे की l
निगाहें पनाह हो रही सुरमई करवटें रातों की ll   

उफन रहा मचल रहा सागर छूने किनारें की टोह l 
चुरा ले गया बहा ले गया तट को लहरों का शोर ll

कश्ती फिर भी सफ़र करती चली आयी तरंगों पे l
पनाह जो उसे मिल गयी उस चाँद की चकोर ll

फुर्सतों की उनकी भीनी भीनी पनाहगायें l
ठिकाना बन गयी मेरी मंजिलों की भोर ll

Saturday, June 5, 2021

तरुवर

तरुवर सा तरुण यह पागल सा मन आज l
टटोल रहा बारिश में खोये हुए पल आभास ll  

डोरे डाल रहे कजरे सँवरे सँवरे गगन आकाश l 
तन लिपट रही शबनमी बूँदे बरस बरस आज ll

खुली खुली लटों के उड़ते जुल्फें दामन आकार l
बादल उतर रहे रह रह आगोश में आकर आज ll

मृदुल तरंग लिख रही नयी बारिश शीतल लहर l
विभोर हो नाच रहे नयन मयूर तरुवर सी नज़र ll

चेतन सचेत बदरी हो रही फुहारों की होली आय l
डूब उतर रहा तन मन बारिशों की हमजोली साथ ll 

बहक गए मेघों के घुँघुरों के सारे सुर और ताल l
लगी समेटने अंजलि बूँदों के अक्स और ताल ll

तरुवर सा तरुण यह पागल सा मन आज l
टटोल रहा बारिश में खोये हुए पल आभास ll    

Friday, June 4, 2021

अतरंग

गूँथ डाली तेरे गुलाबों से महकते पैगाम ने l
जुल्फों में उलझे उलझे गजरे के प्याम ने ll

लावण्य यौवन करवटें बदलती रातों में l
घूँघट में ना हो नूर बहकते आफ़ताब के ll

मधुशाला बहती रहे नयनो के जाम से l
मदहोश रहे सपनों के हसीं संसार में ll

संगीत स्वर लहरी लिए दिल के अरमानों से l 
खनकती रहे चूड़ियाँ प्यार के इस व्यार में ll

डूबे इस कदर साँसों की सरगम ताल  में ऐसे l 
आलिंगन बना रहे धडकनों की मीठी साजिशों में ll

सप्तरंगी रंगो से सजी इस अतरंग कहानी  में l
घुलती रहे चासनी अरमानों की अंतर्मन नादानियों में ll 

_________________________________________________________________________

Thursday, June 3, 2021

यादों की अलमारी

पन्ने बंद कितबों के जो पलटे l
अलमारी खुल गयी यादों की ll

गाँठ खुलते ही पोटली की l
गठरी खनक गयी जोरों से ll

अब तलक जो कैद थी पिटारे में l
बिखर गईं मोतियों के साज सी ll

वो पुरानी मीठी मीठी बातें l
लुके छिपे सूखे फूलों के साये ll

चुराई थी खत से उसकी जो बातें l
छप गयी पन्नों में वो सब बातें ll

बिसर गयी थी जो किताब कल कहीं l
मिली क्यों वो जब थी एक दीवार खड़ी ll
  
पन्ने इसके कुछ नदारद थे l
अंजाम दूर खड़े मुस्करा रहे थे ll

जिल्द उतर गयी थी किताबों की l
अधूरी यादें बन गयी पहेली सी थी ll

किरदार एक मैं भी था इसका l
कहानी वो मेरी ही सुना रही थी ll

Wednesday, May 26, 2021

क़त्ल

दुरस्त गुजर रही थी जिंदगी अकेले में l
क़त्ल कर दिया हसीन खाब्बों के मेलों ने ll

गुनाह हो गया बेबाक़ी निगाहों से l
रिहा कैसे हो उन उम्र कैद बंदिशों से ll

चाँद नज़र आया एक शाम मेरे आँगन में l
चल पड़ा वो भी दिल कारवें संग राहों में ll

मुक़ाम वो आ गया चौराहा ओर करीब आ गया l 
सिर्फ अर्ध चाँद का साया रह गया इस मंज़िल पास ll

आहटों से रसिक इस कदर रहा बेख़बर l
आसमां डूबा ले गया चाँद घटाओं के पास ll

बिसर गया पथिक निकला था किस सफर l
कर बैठे गुनाह उसके मासूम से हमकदम ll  

क़त्ल हो गया अरमानों के तसब्बुर का l
गुनहगार बन गया टूटे दिल ख्यालों का ll  

Saturday, May 15, 2021

अंकुरन

बिन दर्द जीवन का क्या मोल l
गुलाब भी खिलता काँटों के छोर ll

पीड़ ना पहचानी जिस रूह ने l
कुदरत ने रची नहीं ऐसी कपोल ll
 
कुछ और नहीं कवायद यह धड़कनो की l
फासला ना हो साँसों और रूह के करीब ll

मुनासिब हैं आहट कदमों की बनी रहे l
सामंजस्य बना रहे उम्र और तन के बीच ll

बँधी रहे साँसों से साँसों की डोर l
कमज़ोर ना हो आस की डोर ll

टूट गए जो डाली से तो क्यों रोय l
सजा दो गुलदस्ते में नए जीवन की भोर ll

बगियाँ के गुलसिताँ सजी महकती रहे l
अंकुरित कुदरत के प्राणों के बीज़ ll   

Wednesday, May 12, 2021

रुबाब

स्पर्श था उनकी मीठी मीठी यादों का l
मन्नत की कलाई से बंधे धागों का ll

फ़ितरत धुन थी ही उनकी इतनी नायाब l 
शुमार कर लेती हर पैगाम अपने नाम ll 

सागर मचल रहा था आतुर उस किनारें को l 
ठहर गया था वक़्त आतुर उस साये को ll 

मग्न थी वो तारों के शहर अपने सफ़र में l
ख़बर ना थी मुझको भी अपनी उस पल में ll 

चाह ना पूछना उस माली की अब रुखसार l 
मरुधर आस लगाए बैठा मीठे पानी की धार ll

सिलसिला हैं इंतज़ार की नयी सहर आस l
उड़ा ले जाती पवन बदरी किसी दूजे पास ll

तारीख ने तहरीर लिखी थी उनके आने की l
तसब्बुर में चाहत थी उनके कुर्बत में आने की ll 

संदेशा आया फलक तक हमसफ़र सितारों की l
आफ़ताब भी फ़ना हैं इसके रुबाब नज़रों की ll

Sunday, May 9, 2021

हमकदम

एक फ़िक्र उसकी ही थी ज़माने में l
ख़ैरियत बदली नहीं कभी फ़साने में ll

दुआओं के अम्बर में फ़रियाद थी साँसों की l
मंत्र मुग्ध सुध बुध खो जाती राहों में उनकी ll 

कमसिन सा था यह सानिध्य अगर l
लटों में उलझा हिज़ाब था उस नज़र ll

राज छुपाये पुकार थी अंतर्मन की कोई l 
हर नज्म हसीन बने उनके साये जैसी ll

साथ कदम दो कदम उनके चलते कैसे l
मेहर में चाँद को नज़राना चाँद का देते कैसे ll 

सिफ़ारिश की थी सितारों से हमने उस घड़ी l
महफ़िल सजा रखी थी घटाओं ने उस घड़ी ll
 
ओझल था चाँद जाने कौन से झुरमुट बीच l
छोड़ गया यादें बस उन फरियादों के बीच ll

स्पर्श उनकी अनकही मीठी मीठी बातों का l 
छू जाती दिल के तारों को हमकदम जैसे कोई ll

Saturday, May 1, 2021

बेचैन पलकें

बेचैन रहती थी पलकें इस कदर l
अश्कों का कोई मोल नहीं था इस शहर ll

पर कटे परिंदों सा था ये हमसफ़र l
झुकी नज़रें बयाँ कर रही तन्हा यह सफ़र ll

मेहरम नहीं इनायत नहीं सुबह हो या रात भर l
फासला गहरा इतना दो पहर सागर के दो तरफ़ ll

आरज़ू मिली भटकती राह एक शाम इस शहर l
लिपट गयी सहम गयी ख़ुद से सहमी सहमी डगर ll

पगडंडियाँ से पटी थी बाजार की नहर l
निर्जन खड़ी थी जिजीविषा की लहर ll 

आहट एक समाई थी अंदर ही अंदर l
साये संग रूह की ना थी कोई खबर ll

रेखा हथेलियाँ बदलूँ एक रोज नए शहर l
फ़िलहाल ख़ामोश रहूँ कह रही पलकें संभल संभल ll 

 बेचैन रहती थी पलकें इस कदर l
अश्कों का कोई मोल नहीं था इस शहर ll

Friday, April 2, 2021

पनघट

देख चाँद की हिरणी सी मतवाली चाल l
शरमा पनघट करली घूँघट आट ll

आँख मिचौली नज़र नायाब l
बादलों की ओट छिप रहा महताब ll 

बिंदिया सा सज रहा पनघट के ललाट l
प्रतिबिम्ब निखर रहा दरिया के गाल ll

उड़ रहा घूँघट आँचल दामन थाम l
बरस रही बदरी भींग रहा आफताब साथ ll 

झुक गयी पलकें लज्जा गया पनघट ताज l
आसमां से धरती उतर आया दिल का चाँद ll

दरिया के उस छोर चाँद और पनघट साथ l
रास की रात सितारों संग चला आया चाँद ll

देख चाँद की हिरणी सी मतवाली चाल l
शरमा पनघट करली घूँघट आट ll

Saturday, March 13, 2021

पैबंद

ज़ख्मों के पैबंद सिलने भटकता रहा मैं l
अश्कों की कभी इस गली कभी उस गली ll 

डोर वो तलाशता रहा ढक दे जो पैबंद की रूही l 
दिखे ना दिल के जख़्म छुपी रहे सिलन की डोरी ll

ख़ामोशी लिए लहू रिस रहा तन के अंदर ही अंदर l
बुझा दे प्यास पानी इतना ना था समंदर के अंदर ll

मरुधर तपिश सी जल रही तन की काया l
बरगद से भी कोशों दूर थी चिलमन की माया ll

दृष्टिहीन बन गूँथ रहा ख्यालों की माला l
मर्ज़ निज़ात मिले भटकते रूह को साया ll

टूट गया तिल्सिम ताबीज़ के उस नूर का भी l 
बिन आँसू रो उठी पलकों पे जब तांडव छाया ll

लुप्त था धैर्य विश्वास ना था अब गतिमान l
डूब गया प्रहर डस गया इसको तम का आधार ll

सी लूँ पैबंद किसी तरह दिल के बस एक बार l 
छोड़ जाऊ तन का साया इसका फिर क्या काम ll   

Sunday, March 7, 2021

संस्कार

धरोहर जो मिली विरासत में l
मेरुदंड सँवार लूँ संस्कारों में ll

गुंजयमान रहे पल प्रतिपल l 
प्रतिध्वनि चेतना संस्कारों की ll

ज़िक्र चलता रहे सदियों तलक l
संस्कृति उद्धभव से उथानों की ll

परिधि कोई इसे बाँध ना पाए l
प्रतिलिपि इसके पायदानों की ll 

सहेजू दास्तानें उस सुन्दर लेखनी की l 
टूट गयी ज़ंजीरें ग़ुलामी अविव्यक्ति की ll

विद्धेष अग्नि ज्वाला आतुर हो ना कभी l
विपरीत दिशा बहे प्रतिशोध कामना इसकी ll

लौ मशाल तमस चीरती रहे अज्ञानी की l
उम्मीद सृष्टि बँधी रहे अनुकूल किरणों की ll 

परिवेश सुगम सरल हो प्रावधानों की l
बहती रहे गंगा सुन्दर संस्कारों की ll

Monday, March 1, 2021

बिछड़न

बंदिशों की डोर से हम ऐसे बंध गए l
उलझनों में उलझ उनकी तारुफ़ को तरस गए ll

सिलसिला खतों का जाने कहाँ गुम हो गया l
मुँडेर से जैसे पतंगों का माँझा कट गया ll

खनखियों से बातें करना दूर से आहें भरना l 
सपनों में सपनों को छू जिंदादिली से जीभर जीना ll

मन्नतों के धागों में उनके लिए फरियाद करना l
नुक्कड़ से ही उनकी दहलीज़ पर नज़र रखना ll

रिवाजों ने दौर के इस तरन्नुम को बदल दिया l
एक अदद हसीं को भी दिल खुद से मुकर गया ll

प्रतिशोध अग्नि जल रहा तन का मन l
भटक गयी नींद की करवटें दर बदर ll

प्रतिघात यह दे गया बिछड़न का गम l
संगनी संग छूट गया जाने कौन से पहर ll    

Saturday, February 13, 2021

साज

गुज़ारिश की मौशकी के उस अर्ध चाँद से हमनें l
शरीक हो हमारी महफ़िल में पूरे शब्बाब में अपने ll

मुल्तवी करवादी सुरमई आँखों ने हया ऐसे l
सुरमा बह बिखर गया हर और गालों पे जैसे ll

सिफ़ारिश मुनासिब थी उनके क़ुरबत आने की l
फ़रियाद बरसों पुरानी थी पहलू उनके आने की ll

धरोहर थे कशिश के रंग बिरंगे सुनहरे पल l
अतीत के इत्र में महक रहा खोया हुआ मन ll

चट्टानों पर उकेरा सुन्दर आरज़ू आलेख कोई l
ओस की शबनमी बूँदों से बहता आवेग कोई ll

दीवानगी का आलम ना थी सरहदों की सर जमीं l
ख़ामोशी में सिमटी रातें ठहरा हुआ महताब वहीं ll

दस्तूर दिलों की इन रिवायतों का पास यही l
कसक जवां होती हैं हर आरज़ू साज में नयी ll  

Wednesday, February 3, 2021

खनक

चूड़ियाँ गिनने बैठा उसकी कलाई की l
खनक उतर गयी दिल गहराई की ll

राज़दार उसकी आँखे बन गयी l
तसब्बुर में जलते अँगारों सी ll

दफ़न अब तलक सीने में थी जो चिंगारी l 
सोहबत में उसकी रजा बन गयी परछाई की ll 

रंगरेजन रंग गयी हौले से तन्हाई को l
महक उठी हीना जीने शहनाई को ll

पहन ली ताबीज़ बना उसके झाँझर के झंकारों की l 
घुल गयी रातों में मिठास आगोश में सितारों सी ll

शरमा सिमट रही वो खुद के आँचल से ऐसे l
सकून भरी करवटों में मिला साथ चाँद का जैसे ll

लकीरें हाथों की सलवटें माथे की l
स्याह घुल रही जिस्म भींगी रातों सी ll 

नादानियाँ भरी शोखियाँ थी उस चंचल काया की l
निखर आयी साँझ रंग भरे यादों के साये सी ll

रंग भरे यादों के साये सी l
रंग भरे यादों के साये सी ll

Sunday, January 17, 2021

सिफ़ारिश

माना बंदिशे हज़ारों हैं दिल की राहों में l
कुछ और नहीं तो खाब्बों में आ जाया करो ll

ख्यालों की गुलाबी घटाओं में रंग जाओ ऐसे l
संदेशों में मचल रहा हो कोई नादान समंदर जैसे ll 

शहद सी मिठास घुली धुन बन उतर आओ ऐसे l
साज़ सा पिरो लूँ साँसों की इन सरगम में ऐसे ll

सँवार लूँ सपनों की इस अनछुई जागीर को वैसे l
पनाह मिली हो उलझे धागों की कमान को जैसे ll

चाँद सी अनबुझ पहेली बने इन रिश्तों में l
तारों से इशारों में हौले से पैगाम यह कह दो ll

ढलती साँझ सा हसीन इकरार हो l
करार अपना सबसे बेमिसाल हो ll

सिफ़ारिश कर दो अपनी अतरंगी साँसों से ऐसे l
धड़के सिर्फ मेरी रूह की आरज़ू बन जाये ऐसे ll

धड़के सिर्फ मेरी रूह की आरज़ू बन जाये ऐसे l
धड़के सिर्फ मेरी रूह की आरज़ू बन जाये ऐसे ll

Friday, January 1, 2021

परछाई

हमें तो उस परछाई से मोहब्बत हो गयी I
वहम जिसका दिल में लिए हुए जिन्दा थे II

अजनबी सी चाहत थी यह या कुछ और I
जो भी थी कशिश यह थी दिल की और II

अनोखा सा था फ़साना इस इश्क़ का I
अफ़साना था ही इसका बड़ा बेजोड़ II

दीवानों सा आलम था हमारे फ़ितूर में I
बेकरार बावला था दिल उसके सुरूर में II

शोखियों थी चुलबुली सी मस्ती थी I
उस परछाई में मानो रूह की बस्ती थी II

कायनात के लिबास में मिल जाती वो हर ओर I
भटक रही संग मेरे ऐसे बंधी जैसे इससे कोई डोर II

दिल्लगी लगी जब वहम से इस कदर मनमोह I
लाजमी थी मोहब्बत फिर परछाई से कैसे ना हो II

खाब्बों की लकीरों में ख्वाईसों के जो रंग उकेरे थे I
परछाई बन वो ही हमारे दिल से रूबरू हो चले थे II

खुद से खुद हम इस कदर मिल गए I
परछाई के साये में दिल को भूल गए II  

कुछ और नहीं तन्हाईओं में जिन्दा रहने को I 
अनजाने में परछाई से ही मोहब्बत कर बैठे II