POEMS BY MANOJ KAYAL
तुम हो अनछुई सी
छुए धुप तुम्हे गुनगुनी सी
खिलखिलाती हो फूलों सी
चलती हो हिरनी सी
लगती हो परी सी
फिर भी लगती हो अपनी सी
मीठी सी ये चुभन है अनछुई सी
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