Thursday, January 21, 2010

नये संसार की कल्पना

सृष्टि कहे पुकार

मानव निंद्रा से तू अब जाग

टटोल खुद को

खगोल ब्रह्माण्ड को

पपोल धरा को

इनमे छिपे गुणों की कर पहचान

अंकुरित हो सके

नव विज्ञान का आधार

छिपे रहस्यों के खुल जाए राज

नये संसार की कल्पना का

सपना हो जाए साकार

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