Monday, January 18, 2010

अनजाना सफ़र

निकाल पड़े अनजाने सफ़र को

कोई हमदम ना साथ था

मगर विश्वास एक पास था

कर राह था जो प्रेरित

राह कामयाबी की दूर थी

पर शिखर पास नजर आ रहा था

कदम बड़ते चले गए

ओर मंजिल करीब आती गयी

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